मैंनें देखा बन के पंछी ,
नीलगगन में उड़ के देखा ।
मैंनें देखा बन के किरणें ,
चारों और बिखर के देखा ।
मैंनें देखा बन के धारा ,
साहिल से मिल बिछड़ के देखा ।
मैंनें देखा बन के महक ,
फुलों के घर में बस के देखा ।
मैंनें देखा बन के सपना ,
आंखों से मोती जैसे झर के देखा ।
मैंनें देखा पा के सब कुछ ,
सब कुछ मैनें को के देखा ।
मैंनें देखा इतना सब कुछ ,
पर कोई ना अपने जैसा देखा ।
फिर बन के देखा आईना तो ,
सबको अपने जैसा देखा…………..
Hemjyotsana Parashar
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बुधवार, 21 मार्च 2007
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